28 जनवरी 2024 को नीतीश कुमार ने महागठबंन तोड़ एनडीए की नई सरकार बना ली। सरकार से आउट होते ही लालू परिवार पर ईडी के एक्शन ने पॉलिटिकल हलचल बढ़ा दी है। भाजपा और जेडीयू खेमे में इसे लेकर खुशी है कि अब खेला नहीं होगा। आरजेडी भी इस कार्रवाई को कैश कराने की तैयारी में है। जानिए लालू और तेजस्वी पर एक्शन से किसे क्या फायदा, ED के पास क्या सबूत हैं? क्या गिरफ्तारी हो सकती है…
रांची में आदिवासी एकता महारैली आज, बंधु तिर्की बोले, आदिवासी मुद्दों की नहीं की जा सकती अनदेखी
कांग्रेस कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की ने कहा कि झारखंड में आदिवासियों के मुद्दे की अनदेखी कर न तो सत्ता चल सकती है, ना ही सरकार और न ही राजनीति. इसके साथ-साथ उन्हें बांटने वाले किसी भी राजनीतिक दल और संगठन को मुंहतोड़ जवाब दिया जायेगा. बंधु तिर्की ने कहा कि सरना कोड, पांचवीं अनुसूची आदि के साथ ही केन्द्र सरकार द्वारा संसद में प्रस्तुत वित्तीय वर्ष 2024-25 के बजट में आदिवासियों की उपयोजना राशि (ट्राइबल सब प्लान) में कटौती किया जाना, आदिवासियों के हित के साथ खिलवाड़ है और इसे किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं किया जायेगा. राजधानी रांची के मोरहाबादी मैदान में 4 फरवरी को आयोजित आदिवासी एकता महारैली की तैयारी को वे शनिवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित कर रहे थे.
आदिवासी एकजुट हैं
बंधु तिर्की ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके अधीन के संगठनों द्वारा आदिवासियों को बांटने के लिये जमीन-आसमान एक कर दिया गया है लेकिन उन्हें उनकी चाल में कोई भी सफलता नहीं मिलेगी क्योंकि आदिवासी बिना किसी मतभेद के एकजुट हैं और उन्हें दुनिया की कोई शक्ति अलग नहीं कर सकती. भाजपा एवं केन्द्र के साथ ही जिन-जिन प्रदेशों में भाजपा सत्ता में है वहां आदिवासियों की लगातार अनदेखी की जा रही है. उन्होंने कहा कि 2019 के चुनाव में गुमला में एक रैली को संबोधित करते हुए अमित शाह ने सरना धर्मकोड पर विचार करने की बात कही थी लेकिन उस पर अब तक कोई निर्णय नहीं हुआ.
एक्शन में सीएम नीतीश, सभी समिति भंग की:बीस सूत्रीय समिति भी निरस्त; नई कमेटी में बीजेपी नेताओं को मिलेगी जगह
बिहार में एनडीए सरकार के गठन के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक्शन में आ गए हैं। उन्होंने महागठबंधन सरकार की बीस सूत्रीय समितियों को तत्काल प्रभाव से भंग कर दिया गया है। बीस सूत्रीय समिति को एनडीए सरकार गठन के 5वें दिन भंग किया गया है। मंत्रिमंडल सचिवालय ने इसकी अधिसूचना जारी कर दी है।
सभी जिलों के प्रभारी मंत्री तत्काल प्रभाव से हटाए गए
इसके साथ ही सभी जिलों के प्रभारी मंत्री को तत्काल प्रभाव से हटा दिया गया है। कार्यक्रम कार्यान्वयन समिति के अध्यक्ष और जिलों के प्रभारी मंत्रियों के पहले की निर्गत अधिसूचना को निरस्त करने का भी आदेश जारी किया गया है।
बिहार के सभी 38 जिलों में कार्यक्रम कार्यान्वयन समिति तत्काल प्रभाव से निरस्त किया गया है। जिला कार्यक्रम कार्यान्वयन समिति को 20 सूत्रीय भी कहा जाता है। जिला कार्यक्रम कार्यान्वयन समिति में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्यों को मनोनीत किया गया था।
नई कमेटी में बीजेपी नेताओं को मिलेगी जगह
तीन महीने में कमेटी खत्म की गई है। नई कमेटी में बीजेपी नेताओं को जगह दी जायेगी। महागठबंधन सरकार ने 19 अक्टूबर 2023 को बीस सूत्रीय का गठन किया था। 20 सूत्री जिला स्तरीय समिति में जिला प्रभारी मंत्री को अध्यक्ष बनाया जाता है। मुंगेर को छोड़कर बाकी 37 जिलों में कमेटी बनाई गई थी।
उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को पटना जिले का अध्यक्ष बनाया गया था। पटना जिला का उपाध्यक्ष अशोक चौधरी थे। सीएम नीतीश कुमार के गृह जिला नालंदा में 20 सूत्रीय कमेटी के अध्यक्ष वित्त मंत्री विजय चौधरी को गया था।
अशोक कुमार हिमांशु एवं मो. मशरुर अहमद जुबैरी को जिला उपाध्यक्ष बनाया गया था। रोहतास जिले के अध्यक्ष लघु जल संसाधन मंत्री जयंत राज और उपाध्यक्ष रामचन्द्र ठाकुर एवं अजय कुमार सिंह थे।
झारखंड में नई सरकार को लेकर BJP ने अपना रुख किया साफ, भाजपा नेता बोले- JMM और Congress के बीच…
Hemant Soren News झारखंड में सियासी संकट का दौर जारी है। इस बीच चंपई सोरेन के विधायक दल का नेता बनने के बाद सरकार गठन में लगी झारखंड मुक्ति मोर्चा पर भाजपा ने अपना रुख क्लियर कर दिया है। पार्टी सरकार गठन में किसी तरह का गतिरोध नहीं खड़ा करने जा रही है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने कहा कि झामुमो और कांग्रेस के गठबंधन में अंदरूनी असंतोष है।
राज्य ब्यूरो, रांची। चंपई सोरेन के विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद सरकार गठन में लगी झारखंड मुक्ति मोर्चा पर भाजपा की नीति साफ है। पार्टी सरकार गठन में किसी तरह का गतिरोध नहीं खड़ा करेगी। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने कहा कि झामुमो और कांग्रेस के गठबंधन में अंदरूनी असंतोष है।
उन्होंने कहा कि इसके बावजूद उनके पास संख्या है तो राज्यपाल उस पर निर्णय करेंगे। भाजपा ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जो आवाज उठाई थी। उसी का नतीजा है कि ईडी ने हेमंत सोरेन को गिरफ्तार किया है। अब पार्टी सरकार गठन के लिए राजभवन और झामुमो गठबंधन के बीच जो हो रहा है उसकी प्रतीक्षा कर रही है।
भारतीय जनता पार्टी के नेता हेमंत सोरेन के भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जाने को कानूनी प्रक्रिया बता रहे हैं। लेकिन इससे आदिवासी वोटों में संभावित नाराजगी का आकलन भी किया जा रहा है। ऐसे में पार्टी झामुमो सरकार गिराने या उसके गठन में किसी गतिरोध के आरोप से बच रही है।
भ्रष्टाचार के मुद्दे पर मिली बढ़त को भाजपा तोड़जोड़ के आरोप से हल्का करने का रिस्क नहीं ले रही है। हालांकि, भाजपा के गोड्डा से सांसद निशिकांत दूबे ने सोशल मीडिया पर झामुमो गठबंधन में संख्या कम रहने की बात कही है।
केंद्रीय नेतृत्व ने भी प्रदेश नेतृत्व को लोकसभा चुनाव पर फोकस करने को कहा है। सरकार के गठन या उससे जुड़े किसी प्रकरण में भाजपा नेताओं को किसी भी तरह का बयान नहीं देने का निर्देश है।
नीतीश के तीन खास जेडीयू-बीजेपी दोनों तरफ बैठ रहे थे:सरकार गिरने के 6 दिन बाद कांग्रेस नेता का खुलासा; कहा-कोई नीतीश के पक्ष में नहीं था
बिहार में महागठबंधन सरकार गिरने के 6 दिन बाद कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता डॉ. शकील अहमद खान ने बड़ा खुलासा किया। उन्होंने कहा कि NDA में वापसी के लिए नीतीश कुमार ने कांग्रेस को भी जिम्मेदार ठहराया, पर सच तो यह है कि उनके 3 खास लोग ललन सिंह, अशोक चौधरी और संजय झा ही इसके असली किरदार थे। ये तीनों जदयू और भाजपा, दोनों जगह बैठ रहे थे।
नौकरियों का क्रेडिट तेजस्वी के लेने और कांग्रेस को दो मंत्री पद न मिल पाने पर भी डॉ. शकील ने बहुत से भेद खोले। दैनिक भास्कर से एक्सक्लूसिव बातचीत में डॉ. शकील ने और कौन-कौन सी परतें खोलीं…सिलसिलेवार पढ़िए।
सवाल- नीतीश कुमार ने आप लोगों का साथ छोड़ दिया, इसका कितना असर चुनाव पर पड़ेगा?
जवाब- दोनों पार्टी, बीजेपी और जेडीयू अपने आचार, विचार और किरदार में डबल स्टैंडर्ड की पार्टी हैं। सच तो यह है कि तीन राज्यों में, जहां बीजेपी ने सरकारें बनाईं, वहां कांग्रेस का वोट परसेंट बढ़ गया। इसका मतलब है कि जनता विरोध में है। यह लोकसभा चुनाव 2024 में रिफ्लेक्ट होगा। ऊपर से लग रहा है कि दोनों मिल गए हैं, लेकिन दोनों पर यह इल्जाम तो है ही कि इनका कोई किरदार नहीं है।
सवाल-फिर कैसे आप लोगों ने नीतीश कुमार पर भरोसा कर लिया?
जवाब- जाहिर सी बात है, उनके पास बहाने बहुत सारे हैं। हम लोगों ने नीतीश कुमार को काफी सम्मान दिया। उनकी पार्टी में ललन सिंह, संजय झा और अशोक चौधरी, ये तीन किरदार तो पहले से भारतीय जनता पार्टी के पास जा रहे थे। ये सब हम लोग देख रहे थे। अब देखिए कि नीतीश कुमार पहले जब सीएम पद की शपथ लेते थे और कैबिनेट मिनिस्टर की भी लिस्ट आ जाती थी। अब क्यों देर हो रही है? ऐसे किरदार जब आपस में मिलते हैं तो ऐसी ही स्थिति बनती है।
सवाल-आप क्या कहना चाहते हैं कि नीतीश कुमार को यही तीन किरदार चला रहे हैं?
जवाब- नीतीश कुमार को चलाने में तो कई लोग हैं, लेकिन ये तीनों कभी कुछ, कभी कुछ बोलते रहते हैं। ललन सिंह किस तरह से बोल रहे हैं देख लीजिए।
सवाल-नीतीश कुमार पलटी मारते रहे हैं, उनका बीजेपी के साथ भी काफी लंबा साथ रहा है, फिर आपको भरोसा कैसे हुआ?
जवाब- गलतियां हो जाती हैं। इस तरह की कसमें वे खाने लगे कि हम लोगों को विश्वास हो गया। कहते थे कि देश बर्बाद हो जाएगा, इतिहास बदल रहा है, संविधान बदल रहा है। यह सब बड़े-बड़े जलसों में नीतीश कुमार ने कहा। हमें लगा कि ये गांधी के रास्ते पर आ जाएंगे, लेकिन गांधी और गोडसे को एक साथ चिपकाकर वे राजनीति करेंगे तो उनका कोई इतिहास रह जाएगा क्या?
सवाल- नीतीश कुमार को आपलोगों ने अध्यक्ष क्यों नहीं बनाया? क्या खतरा दिखा था कांग्रेस को?
जवाब-26 पार्टियां की अलायंस I.N.D.I.A है। नीतीश कुमार से पूछिए कि जहां-जहां उन्होंने अपना हवाई जहाज घुमाया था, वे सब इनके पक्ष में थे क्या? ममता बनर्जी, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, अरविंद केजरीवाल उनके पक्ष में थे क्या? हम लोगों ने ऑफर दिया, उसे स्वीकार कर लेना चाहिए था। इसका मतलब है कि वे अपना एजेंडा लेकर इंडिया गठबंधन में साथ आए थे। जो होता है, अच्छे के लिए होता है।
सवाल-इंडिया गठबंधन को इससे ताकत मिलेगी या कमजोर होगा?
जवाब- गठबंधन जनता के साथ होता है। जनता इस तरह के दांव-पेंच नहीं समझती है क्या..। जब हमलोग गठबंधन में साथ आए तबलोगों को बिहार में इतनी नौकरियां मिलीं।सवाल- ये क्रेडिट तो जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस तीनों अलग-अलग ले रही हैं?जवाब- वे तो 17 साल से सत्ता में भाजपा के साथ रहे। ये नौकरियां तो पुराना बैकलॉग है। ये डिमांड पुराना था। हमारा दबाव था, तभी इतनी नौकरियां दी गईं।
सवाल- दबाव तो आप लोगों का ऐसा था कि दो और मंत्री पद की मांग कांग्रेस करती रही और नीतीश कुमार ने नहीं ही दिया?
जवाब- मैं जनता के कार्यक्रमों की बात कर रहा हूं। वे नियोजित शिक्षकों को राज्यकर्मी का दर्जा देने के बिल्कुल खिलाफ थे। हम लोगों ने इसके लिए मीटिंग करवाई। उनको मानना पड़ा। बिहार के स्कूल-कॉलेजों का क्या हाल बनाकर रख दिया? 15 साल से तो नीतीश कुमार ही सत्ता पर रहे हैं। हमलोगों का दबाव रहा। बीजेपी वाले क्यों नहीं करवा पाए थे नीतीश कुमार से?
सवाल- दो और मंत्री पद आप लोग क्यों नहीं ले पाए?
जवाब- हमलोग सिर्फ ये नहीं चाहते थे कि दो और बर्थ मिल जाएं, बल्कि हमारा बड़ा लक्ष्य बीजेपी को रोकने का है।सवाल- नीतीश कुमार का क्या लक्ष्य था?जवाब- ये वही जानें। वे गाहे-बगाहे बताते रहे हैं। पब्लिक के बीच स्टेटमेंट देते थे कि हमें कुछ नहीं चाहिए, कोई पद नहीं चाहिए और मन में कुछ और रखे हुए थे।
सवाल- बिहार में सरकार जा रही थी और आपकी पार्टी सीमांचल में थी, सारे के सारे विधायक। टूट का खतरा था क्या?
जवाब- कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व बिहार के दौरे पर था। हमारे सारे विधायक राहुल गांधी की पदयात्रा में थे। वह बहुत बड़ा कार्यक्रम रहा.. सामाजिक न्याय को लेकर, भाईचारा को लेकर। वहां पहले से कार्यक्रम था। अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह और मैं पांच दिन पहले से पहुंच गए थे।
सवाल- कन्हैया कुमार, बिहार में लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे क्या, वे भी राहुल गांधी के साथ पदयात्रा में रहे?
जवाब- ये फैसला पार्टी के अंदर गठबंधन के साथ मिलकर हम लोग करेंगे। हमारा गठबंधन राजद और लेफ्ट के साथ मजबूती के साथ है। हम लोग तो सीट बंटवारे का काफी काम कर चुके थे, लेकिन संजय झा इधर भी बैठ रहे थे और उधर भी बैठ रहे थे। यही किरदार है क्या?
सवाल- आपको क्या लगता है, बिहार विधानसभा अध्यक्ष को लेकर जो फ्लोर टेस्ट होना है उसमें खेला हो सकता है क्या?
जवाब- ये तो जब होगा तब देखा जाएगा। इस पर अभी बोलने के लिए कुछ नहीं है। कुछ चीजें समय पर तय होती हैं।सवाल- खतरा कांग्रेस, आरजेडी पर ही बताया जा रहा है?जवाब- ये अशोभनीय बात है। ऐसी कोई मिसाल नहीं कि कांग्रेस टूट गई हो। टूट तो जेडीयू और बीजेपी भी सकती है।
सवाल- यह सवाल इसलिए कि सत्ता पक्ष की तरफ राजनीतिक नेताओं का खिंचाव ज्यादा दिखता रहा है?
जवाब- जो परमानेंट सत्ता पक्ष है, उसकी तरफ ज्यादा लोग रहते हैं। लोग अपना भविष्य देखते हैं, किरदार देखते हैं।
पूर्व बाहुबली सांसद पर पशुपति पारस ने जताया भरोसा, 21 नेता भी बने सदस्य
केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (RLJP) के राष्ट्रीय अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस ने पूर्व सांसद सूरजभान सिंह को केंद्रीय संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बनाया है। पशुपति पारस ने उनपर भरोसा जताया है। साथ ही 21 नेताओं को ससंदीय बोर्ड का सदस्य भी बनाया है।
पहले वैशाली सांसद वीणा सिंह संसदीय बोर्ड की अध्यक्ष थीं, लेकिन लोजपा (रा) की स्थापना दिवस के दिन वीणा देवी पटना में आयोजित समारोह में चिराग पासवान के साथ मंच पर पहुंच गईं। चाचा को छोड़ उनके भतीजे के गुट में वापस चले जाने के बाद पशुपति कुमार पारस ने अपनी पार्टी के ससंदीय बोर्ड को भंग कर दिया था, लेकिन शनिवार को दिल्ली में इसका फिर से गठन कर दिया है। अब सूरजभान सिंह को अब नई और बड़ी जिम्मेवारी सौंप दी गई है।
हत्या, लूट समेत कई मामलों में चल चुका है केस
एक समय सूरजभान सिंह का अपराध की दुनिया में बड़ा नाम था। उनके ऊपर हत्या, लूट और रंगदारी के कई केस थे। रेलवे टेंडर के खेल में भी माहिर थे। 1998 में पुलिस ने सूरजभान सिंह को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। 2000 का चुनाव उन्होंने जेल से ही निर्दलीय लड़ा।
नॉमिनेशन के दौरान बाढ़ में करीब 40 हजार लोगों की भीड़ जुटी थी। 2004 के लोकसभा चुनाव के वक्त सूरजभान सिंह लोजपा में शामिल हो गए और बलिया से चुनाव लड़कर संसद पहुंचे। सूरजभान सिंह के भाई चंदन सिंह नवादा से सांसद है। उनकी पत्नी वीणा देवी मुंगेर लोकसभा सीट से सांसद रह चुकी हैं।
सवाल- सूरजभान सिंह ही क्यों?
सूरजभान सिंह की राजनीतिक शुरुआत तब हुई जब दिवंगत केंद्रीय मंत्री व लोजपा के संस्थापक रामविलास पासवान ने लोक जनशक्ति पार्टी का गठन किया था। सूरजभान सिंह पार्टी के संस्थापक सदस्य हैं।
जब-जब पार्टी पर किसी भी प्रकार का संकट गहराया तो वो संकटमोचन बनकर हमेशा डंटे रहे। पासवान परिवार के सबसे विश्वासी और करीबी हैं। इस लिए उन पर भरोसा जताते हुए पशुपति कुमार पारस ने उन्हें नई जिम्मेवारी सौंपी है।
पत्नी और भाई भी बने सांसद
सूरजभान सिंह पटना जिले में मोकामा के शक्करबार टोला के रहने वाले हैं। इनके परिवार से कुल तीन लोग सांसद बने। सबसे पहले सूरजभान सिंह खुद ही सांसद बने थे। वो परिसिमन में बदलाव से पहले बलिया लोकसभा क्षेत्र से 2004 में चुनाव लड़े थे।
इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में मुंगेर से इनकी पत्नी वीणा देवी सांसद बनी। फिर 2019 में इनके छोटे भाई चंदन सिंह नवादा से चुनाव जीते और वर्तमान में सांसद हैं। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सह संस्थापक सदस्य रामजी सिंह के अनुसार सूरजभान सिंह ने जब से पार्टी को जॉइन किया तब से वो निरंतर बने रहे। पार्टी के प्रति ईमानदारी और पूरी निष्ठा के साथ काम किया। उनका समाज और पार्टी, दोनों ही जगह पर प्रभाव है। पार्टी में भी सर्वमान्य नेता हैं।
अब आगे क्या?
दरअसल, हर राजनीतिक पार्टी का अपना ससंदीय बोर्ड होता। जो सबसे महत्वपूर्ण होता है। यह एक संवैधानिक पद होता है। जल्द ही लोकसभा का चुनाव होना है। बोर्ड का काम सामंजस्य बैठाकर काम करना है। चुनाव में उम्मीदवारों का चयन यही बोर्ड करती है। बोर्ड का गठन कर पशुपति कुमार पारस ने यह बता दिया है कि उनकी पार्टी चुनावी मूड में आ गई है। अब पार्टी ने अपनी तैयारी शुरू कर दी है।
हेमंत से जुड़े केस में ED का शिकंजा, मास्टरमाइंड पूर्व राजस्व निरीक्षक भानु प्रताप की गिरफ्तारी
ईडी टीम हेमंत सोरेन और भानु प्रताप प्रसाद को आमने-सामने बैठाकर पूछताछ कर सकती है। ईडी की ओर से मामले के जांच अधिकारी ने भानु प्रताप प्रसाद को रिमांड पर लेने का आवेदन ईडी कोर्ट में दिया है।
रांची जमीन घोटाले में बड़गाईं अंचल के तत्कालीन राजस्व उपनिरीक्षक भानु प्रताप प्रसाद को ईडी ने हेमंत सोरेन से भी जुड़े मामले में गिरफ्तार कर लिया है। ईडी ने 31 जनवरी को ही भानु प्रताप प्रसाद को इस केस में प्रोडक्शन पर लेने के लिए पीएमएलए की विशेष अदालत में आवेदन दिया था। भानु प्रताप का प्रोडक्शन शनिवार को ईडी को मिल गया। अब सोमवार को भानु प्रताप प्रसाद को रिमांड पर लेने का आवेदन ईडी कोर्ट को देगी।
पूर्व सीएम के केस से क्या है भानु का कनेक्शन
बरियातू के सेना जमीन घोटाले में ईडी ने भानु प्रताप प्रसाद को 14 अप्रैल 2023 को गिरफ्तार किया था। भानु प्रताप प्रसाद के यहां जब छापेमारी की गई थी, तब उसके आवास से कई ट्रक सरकारी दस्तावेज मिले थे। बड़गाईं अंचल के रजिस्टर 1 व रजिस्टर 2, डीड समेत कई कागजात मिले थे। वहीं, भानु के ही मोबाइल से हेमंत सोरेन के कब्जे वाली जमीन के दस्तावेज मिले थे। इस मामले में भानु ने ही सबसे पहले खुलासा किया था कि बड़गाईं अंचल की 8.50 एकड़ जमीन के सर्वे का आदेश सीएमओ से आया था। जिसके बाद सीओ मनोज कुमार के कहने पर भानु ने सर्वे करने की बात कबूली थी। ईडी ने अनुसंधान के क्रम में खुलासा किया है कि जमीन के रजिस्टर में हेमंत सोरेन का नाम दर्ज किया जाना था, लेकिन एजेंसी की कार्रवाई की वजह से ऐसा नहीं हो पाया। हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के ठीक पहले ईडी ने इस मामले में भानु के प्रोडक्शन का आवेदन दिया था। इस केस में आरोपी नंबर एक भानु ही होगा, जबकि दूसरे आरोपी तत्कालीन सीएम हेमंत सोरेन होंगे।
पूर्व सीएम और भानु प्रताप को आमने सामने रखकर हो सकती है पूछताछ
सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की जमीन घोटाले में मुश्किलें बढ़ सकती हैं। ईडी जमीन घोटाले के मास्टर माइंड मुख्य साजिशकर्ता बड़गाई अंचल के तत्कालीन राजस्व कर्मचारी भानु प्रताप प्रसाद को मामले में रिमांड पर लेगी।
मिली जानकारी के अनुसार ईडी टीम हेमंत सोरेन और भानु प्रताप प्रसाद को आमने-सामने बैठाकर पूछताछ कर सकती है। ईडी की ओर से मामले के जांच अधिकारी ने भानु प्रताप प्रसाद को रिमांड पर लेने का आवेदन ईडी कोर्ट में दिया है। ईडी ने बड़गाईं अंचल क्षेत्र की 8.46 एकड़ जमीन घोटाले का मामले सामने आने पर भानु प्रताप प्रसाद के खिलाफ 1 जून 2023 को धोखाधड़ी, षड्यंत्र रचने समेत अन्य भादवि की धाराओं के तहत केस दर्ज कराया था। लेकिन केस दर्ज होने के छह महीने बाद अब ईडी ने आरोपी को रिमांड पर लेने का आवेदन दिया है। कोर्ट से अनुमति मिलते ही आगे की प्रक्रिया ईडी की ओर से प्रारंभ की जाएगी।
भाजपा बिहार में यूपी-एमपी मॉडल लागू नहीं कर पाएगी:सम्राट के आगे नहीं झुके नीतीश, बिहार में पहली बार विभाग बंटवारे में इतनी देर
नीतीश कुमार पिछले 17 साल से बिहार के मुख्यमंत्री हैं। रिकॉर्ड नौ बार वे शपथ ले चुके हैं। ये पहला माैका है जब मंत्रिमंडल के विभागों के बंटवारे में 6 दिन का समय लगा। आखिर इसकी वजह क्या है? भाजपा और जदयू के बीच कैसा संतुलन बिठाया गया। कई कयास थे, लेकिन सभी ढह गए। इस बंटवारे में केवल नीतीश कुमार की ही चली। उन्होंने भाजपा को विभाग तो ज्यादा थमा दिए, लेकिन पैसा-पॉवर जदयू के खाते में डाल दिया।
इनमें जो विभाग सबसे महत्वपूर्ण और प्रतिष्ठा का विषय बन गया था, वो था गृह विभाग। इसे पाने की छटपटाहट भाजपा में दिख रही थी। डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी भी जिद कर रहे थे। इसके पीछे की वजह थी- बिहार में एमपी-यूपी मॉडल की तर्ज पर (अपराधियों का एनकाउंटर और संपत्तियों पर बुलडोजर चलवाना) काम करके जनता के बीच भाजपा का स्ट्रांग मैसेज पहुंचाना, लेकिन नीतीश कुमार ने भाजपा की इस प्लानिंग पर फिलहाल पानी फेर दिया है। उन्होंने गृह विभाग इस बार भी नहीं छोड़ा।
बता दें कि बिहार की यही परंपरा भी रही है कि यहां जो सीएम बना, उसी के पास गृह विभाग रहा। नीतीश कुमार के पहले वाले सीएम भी गृह विभाग अपने ही पास रखते आए हैं। उन्होंने इस परंपरा को नहीं तोड़ा। कयास थे कि इस बार भाजपा गृह मंत्रालय ले लेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ है। ऐसे में भाजपा का बिहार में बुलडोजर चलाने का सपना धरा का धरा रह गया।
अपने मॉडल से ऊपर कोई मॉडल नहीं आने देंगे नीतीश:
नीतीश कुमार कभी भी बिहार में अपने सुशासन वाले मॉडल के ऊपर किसी दूसरे मॉडल को हावी नहीं होने देंगे। देशभर में नीतीश कुमार की छवि सुशासन कुमार के रूप में बनी है। बिहार से क्राइम और जंगल राज को समाप्त करने का क्रेडिट नीतीश कुमार खुद लेते रहे हैं।
2005 से 2010 का दौर था, जब उन्होंने शहाबुद्दीन, अनंत सिंह, रीतलाल यादव और आनंद मोहन जैसे बाहुबलियों समेत 75 हजार से ज्यादा छोटे- बड़े अपराधियों को जेल की हवा खिला दी थी। वो भी बिना किसी एनकाउंटर और बुलडोजर के। हर जिले में फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना हुई, जिनसे 5 साल में लगभग 52 हजार अपराधियों को सजा भी दिलवाई गई।
इसी कारण उनका सुशासन कुमार पड़ा था। उनके इस मॉडल की चर्चा देशभर में हुई, लेकिन हालिया कुछ महीनों में क्राइम को खत्म करने का बीजेपी का जो मॉडल लोकप्रिय हुआ है, वो एनकाउंटर और बुलडोजर का मॉडल है।
भाजपा बिहार में भी इसी मॉडल से खुद को मजबूत करना चाहती थी। मगर खुद को जेपी, लोहिया और कर्पूरी जैसे समाजवादियों का वाहक कहने वाले नीतीश कभी भी अपनी सरकार पर ये आरोप नहीं लगवाना पसंद नहीं करेंगे कि उन्होंने एनकाउंटर और बुलडोजर के दम पर सरकार चलाई।
बिहार में पहली बार विभाग बंटवारे में इतनी देर-
सबसे बड़ा कारण गृह विभाग की खींचतान है। इसके चलते बिहार में पहली बार विभाग का बंटवारा और मंत्रिमंडल विस्तार में इतनी देरी हुई है। इससे पहले 8 बार नीतीश बिहार के सीएम बन चुके हैं और हर बार उन्होंने विभागों का बंटवारा सरकार बनने के बाद या तो उसी दिन या ज्यादा से ज्यादा 4 दिन के भीतर कर लिया।
साथ में मंत्रिमंडल का विस्तार भी, लेकिन इस बार सरकार बनने के बाद 6 दिन तक विभागों का बंटवारा न हो पाने के कारण नीतीश भी अनकंफर्ट हुए और भाजपा के नेता भी। इससे विपक्ष को यह कहने का मौका मिलने लगा कि बिहार में असली खेला अभी बाकी है।
उनका इशारा था- फ्लोर टेस्ट से पहले एनडीए में टूट-फूट होने का। विपक्षी नेताओं की इन बातों को और हवा तब मिली, जब एनडीए का हिस्सा बने जीतनराम मांझी ने दो मंत्री पद की मांग रखते हुए यहां तक कह दिया कि अगर एक मंत्री और न मिला तो यह अन्याय होगा। मैंने महागठबंधन से मिले सीएम पद के ऑफर को ठुकराया है।
छोटे नहीं, बड़ा भाई की भूमिका में ही रहेंगे नीतीश-
मजे की बात यह है कि इस बार कहा जा रहा था कि नीतीश कुमार भाजपा के साथ एडजस्टमेंट करके चलेंगे और हो सकता है कि छोटे भाई की भूमिका में भी आ जाएं, लेकिन गृह समेत महत्वपूर्ण विभाग लेकर नीतीश ने बता दिया कि बिहार में अब भी वे ही सर्वोपरि है।
इस पर राजनीतिक जानकार प्रवीण बागी कहते हैं कि विभागों के बंटवारे से नीतीश ने साफ कर दिया कि बिहार की सियासत में वे जैसा चाहेंगे- वैसा ही होगा। इस बार भी तीन विभागों को छोड़कर बंटवारा उसी तरीके से किया गया है, जैसा 2020 में एनडीए सरकार के दौरान था।
केवल तीन विभाग पशु एवं मत्स्य, पिछड़ा एवं अति पिछड़ा और आपदा प्रबधंन विभाग अलग से भाजपा को दिया गया है। इस बंटवारे में भाजपा के 23 विभागों का बजट 69 हजार 432 करोड़ रुपए है तो जदयू के 19 विभागों का बजट 1 लाख 17 हजार 529 करोड़ रुपए है। यानी अब भी नीतीश कुमार ही बड़े भाई ही बने और भाजपा छोटा भाई।
अब पढ़िए क्या कहते हैं भाजपा नेता…
बिहार को जंगल राज से मुक्त कराना हमारा प्राथमिक प्रयास- बीजेपी
भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष संतोष पाठक ने कहा कि बिहार को जगंल राज से मुक्त कराना हमारा प्राथमिक प्रयास रहा है। उस लक्ष्य पर हमने गंभीरता से पहले भी प्रयास किया है। इस सरकार में भी हमारा ये लक्ष्य रहने वाला है।
हमारे प्रदेश अध्यक्ष और डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी ने कई जगहों पर ये स्पष्ट किया है कि गुंडा तत्व बिहार में समाज को अस्थिर करने का प्रयास करेंगे तो वे नेपाल जाएंगे नहीं तो उनका पिंडदान गया में होने वाला है। हमारा मूल लक्ष्य समाज में सुशासन स्थापित करना है। किस प्रकार से सुरक्षा की भावना विकसित हो सके उस पर काम करना है।
विभाग बंटवारे के बाद भाजपा भी सुशासन की राह पर-
यूपी-एमपी मॉडल पर बिहार भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता कुंतल कृष्णन ने कहा कि बिहार में भारतीय जनता पार्टी का अभी सिर्फ एक मॉडल है, जंगल राज खत्म करके सुशासन का फिर से स्थापना और बिहार के विकास का मॉडल।
हमारी प्राथमिकता बिहार का विकास और फिर से सुशासन की स्थापना करना है। नियम-कानून के अनुसार सरकार चलाना है। एक तयशुदा फॉर्मूले के तहत मंत्रियों में विभागों का बंटवारा कर दिया गया है। जिससे सरकार का कामकाज सुचारू रूप से चल सके।
भाजपा से टकराव टालना बड़ी चुनौती
ये तय है कि लोकसभा चुनाव तक सब कुछ ठीक ठाक रहेगा, लेकिन जिस तरह से मंत्री बनने के बाद भाजपा के नेताओं ने विभाग बंटवारा तक सरकारी गाड़ियां नहीं ली थी। कहा ये भी जा रहा है कि वापस लौटा दी थी, ऐसे में बंटवारे में कम बजट वाले विभाग से वे खुश नहीं होंगे, लेकिन चूंकि केंद्रीय नेतृत्व का जोर बिहार की लोकसभा की 40 सीटों पर हैं। ऐसे में अभी कुछ नहीं बोलेंगे।
भाजपा के नेताओं के बीच लोकसभा चुनाव के बाद तल्खियां जरूर देखने को मिलेगी। विभाग बंटवारे के बाद एक मंत्री का बयान भी चर्चा में है कि ‘हर अपमान के बाद भी बिहार का विकास करेंगे’। संदर्भ भले ही विभाग का बंटवारा नहीं हो, लेकिन इससे कहीं न कहीं उनकी टीस जरूर नजर आती है। ऐसे में नीतीश के लिए भाजपा और हम के साथ संतुलन बिठाने की चुनौती रहेगी।
फ्लोर टेस्ट की रणनीति तैयार, हैदराबाद में विधायक कर रहे इंतजार; कब लौटेंगे रांची?
हैदराबाद के लिओनिया रिजॉर्ट में महागठबंधन के 36 विधायक एकसाथ मौजूद हैं। रिजॉर्ट में फ्लोर टेस्ट कर रणनीति को अंतिम रूप दिया जा रहा है। मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन के संपर्क में सभी विधायक हैं।
महागठबंधन के विधायकों को एकजुट रखने के लिए रिजॉर्ट पॉलिटिक्स जारी है। हैदराबाद के लिओनिया रिजॉर्ट में महागठबंधन के 36 विधायक एकसाथ मौजूद हैं। रिजॉर्ट में फ्लोर टेस्ट कर रणनीति को अंतिम रूप दिया जा रहा है। मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन के संपर्क में सभी विधायक हैं। विधायकों की सुरक्षा के लिए लिओनिया रिजॉर्ट से 700 मीटर पहले ही बैरिकेडिंग कर दी गई है।
विधायकों का कहना है कि क्षेत्र की जनता से दूर रहना उन्हें नागवार गुजर रहा है, लेकिन जनादेश की रक्षा करना भी उनका फर्ज है। उन्हें उम्मीद है कि जल्द सरकार का गठन होगा और वह अपने क्षेत्र में लौट कर जनता की सेवा में जुटेंगे। हैदराबाद में होकर भी विधायक संचार माध्यमों से रांची और अपने -अपने क्षेत्र के लोगों से जुड़े हैं।
हैदराबादी खिचड़ी और कीमा समोसा का लिया लुफ्त
विधायकों ने शनिवार को हैदराबादी खिचड़ी और कीमा समोसा का लुफ्त उठाया। इसके अलावा कई विधायकों ने चावल, दाल, भिंडी फ्राइ भी लिये। वहीं, दम पख्त बिरयानी, पाया, गोश्त पसिंदे, निहारी, मिर्ची का सालन, कुबानी का मीठा, डबल का मीठा, जौजी हलवा, शीर सुरमा भी परोसा गया।
हैदराबाद से रांची आज आएंगे सभी विधायक
महागठबंधन के विधायक रविवार की दोपहर हैदराबाद से रांची के लिए रवाना होंगे। सभी 36 विधायक और अन्य नेता चार्टर प्लेन से रांची पहुंचेंगे। रांची में सभी को सीधे सर्किट हाउस लाया जाएगा। यहां भी विधायकों को सुरक्षा में रखा जाएगा। सोमवार को झारखंड विधानसभा के सत्र से पहले 10 बजे सभी विधायकों को विधानसभा ले जाया जाएगा, जहां वे नवनियुक्त सरकार के बहुमत साबित करने के लिए मतदान करेंगे। फ्लोर टेस्ट के बाद ही विधायकों को छोड़ा जाएगा।
झारखंड में कल से बदलेगा मौसम का मिजाज, इन जिलों में बारिश के आसार; ठंड से मिलेगी राहत
Jharkhand Weather: सोमवार से मौसम में बदलाव की संभावना व्यक्त की गई है। पांच फरवरी को राज्य के उत्तरी पलामू और राजधानी के आसपास के जिलों में भी बादल छाएंगे। छह फरवरी तक असर रहने की संभावना है।
झारखंड के पश्चिमी और उत्तरी भाग स्थित पलामू और आसपास के जिलों में ठंड बढ़ गयी है। मौसम विभाग के अनुसार, राज्य के दक्षिणी भाग में रांची और आसपास के क्षेत्रों में सुबह में कुहासा छाया रहा। लेकिन, नौ बज तक छंट गए।
रांची का अधिकतम तापमान 24.6 और न्यूनतम तापमान 12.6 डिग्री दर्ज किया गया। राज्य में सबसे अधिकतम जमशेदपुर में 29.5 डिग्री और न्यूनतम 13.4 डिग्री दर्ज किया गया। वहीं, गढ़वा, गुमला, लोहरदगा और खूंटी जिलों का न्यूनतम तापमान 10.0 डिग्री से नीचे चल रहा है। राज्य में इन जिलों में अगले 24 घंटे के दौरान रात में ठंड बढ़ने की संभावना है। इसके बाद पांच फरवरी से मौसम बदलाव होगा और न्यूनतम तापमान में इजाफा होगा।
मौसम बदलाव के बाद पलामू और आसपास के जिलों में सर्दी ज्यादा है। इन इलाकों पर यूपी और छत्तीसगढ़ के नजदीकी क्षेत्र होने के कारण यहां सर्द हवा का प्रकोप बढ़ गया है। अगले 24 घंटों के दौरान भी यही स्थिति बनी रहेगी। लेकिन उसके बाद राज्य में बादल छाने से मौसम में फिर बदलाव होगा। -अभिषेक आनंद, वैज्ञानिक, मौसम विभाग
पांच को छाएंगे बादल
राज्य में सोमवार से मौसम में बदलाव की संभावना व्यक्त की गई है। पहले दिन पांच फरवरी को राज्य के उत्तरी पलामू और राजधानी के आसपास के जिलों में भी बादल छाएंगे। इसका प्रभाव छह फरवरी तक रहने की संभावना व्यक्त की गई है।