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एशिया का सबसे बड़ा “कुन्दरी लाह बागान” पुनः हो गया मृत : कमलेश सिंह

भारत ही नही एशिया महादेश का सबसे बड़ा लाह उत्पादक बागान जिसकी योजनाओं की प्रसंशा स्वयं माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी एवं उपराष्ट्रपति श्री वैंकेया नायडू महोदय ने वर्ष 2017 में प्राइम मिनिस्टर एक्सीलेंस अवार्ड में चयनित होने पर की थी। यहां पर पर्यावरण संरक्षण और स्वरोजगार का अनूठा संगम देखने को लाह उत्पादन एवं हर्बल गुलाल में देखने को मिला। तत्कालीन उपायुक्त श्री अमित कुमार एवं समाज सेवी कमलेश सिंह की जोड़ी ने पलामू की पहचान को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई थी।
गौर करें तो पलामू क्षेत्र में कभी 5000 टन लाह का उत्पादन करके संयुक्त बिहार – झारखण्ड में पलामू प्रमंडल का देशस्तर पर 25% अकेले सहभागिता थी। लेकिन के विभागीय अधिकारियों की कुव्यवस्था और धनलोलुपता अर्थात कहें तो ग्रामीणों को बेरोजगार करने का षड्यंत्र करके पूरी लाह खेती को खत्म कर दिया । आज करीब 120 टन का ही उत्पादन हो पा रहा है वह भी बिना किसी सरकारी सहयोग से।
कुन्दरी लाह बागान को स्थानीय ग्रामीणों के सहयोग से 2013 में पुनः संरक्षण का कार्य प्रारंभ हुआ और 2017 में पैंतीस हज़ार लाह पोषक वृक्षो को लाखों तक पहुंचाया। फिर तत्कालीन उपायुक्त अमित कुमार और राज्य सरकार के सहयोग से आहारों का जीर्णोद्धार, भवन निर्माण, लाह फेक्ट्री निर्माण, गुलाल फेक्ट्री निर्माण, लाह खेती के लिए अलग से राशि आवंटन कराया गया। पलामू के पलाश की ख्याति अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुँच गई। लेकिन काल के रूप में वन विनाश विभाग और JSLPS ने अपने अधिपत्य और धनलोलुपता के आगे गांव का विकास ही नही एशिया का सबसे लाह बागान भी लाचार हो गया और आज पुनः मृत्यु के कगार पर पहुंच गया। यहां के वृक्षो को काटा जा रहा है, बागान असमाजिक तत्वों का अड्डा बन गया है, वनक्षेत्र से वन विभाग के अधिकारी पेड़ो को अवैध रूप से काट कर बेच रहे हैं। बागान में आज 7 वर्षो से उत्पादन के नाम पर खानापूर्ति हो रहा है। राज्य के JSLPS जिला प्रशासन और राज्य को गलत आंकड़े भेज कर झूठी वाह वाही करने मग्न है। स्थानीय जनप्रतिनिधियों को इससे कोई सरोकार नही।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से खेती हो तो लाभ पलामू वासियों को ही नही बल्कि राज्यभर के लाह किसानों को मिलेगा। कुन्दरी लाह बागान रंगीनी लाह के लिए उपयुक्त है और इसके बिहन कि उपलब्धता झारखण्ड मध्यप्रदेश और छतीसगढ़ जिले पर निर्भर है। जबकि इस बागान के सहयोग से हज़ारों टन लाह बिहन पूरे झारखण्ड के लिए उपलब्ध होगा। और यहां के किसानों को समय पर बिहन मिल जाएगा। जिससे पांच गुणा खेती बढ़ेगा। प्रत्येक किसान को वर्षभर में एक से डेढ़ लाख रुपए का मुनाफा बढ़ जाएगा। किसानों की आर्थिक उन्नति बढ़ने से शिक्षा और स्वास्थ्य में बेहतर सुधार होगा।
वन विभाग और JSLPS के कारस्तानी पर विगत 10 वर्षों पर गौर करें तो इनकी मंशा नागरीको के विकास से ज्यादा स्वयं की आर्थिक उन्नति का पूर्ण ध्यान रखा गया है। कुन्दरी लाह बागान पर मात्र अधिपत्य करके उगाही और सरकारी राशि का दुरूपयोग करने तक सीमित है।
पलामू के समाजसेवियो, मीडिया बंधुओ एवं जनप्रतिनिधियों से आग्रह है कि एक बार पुनः इस पलाश से रोजगार की योजना को उठाने में सहयोग करें।

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